सितंबर 8, 2025

कोविड-19 पॉजिटिव, कंधे की चोट और समय से दौड़

श्रीलंका के लिए दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ घरेलू सीरीज से ठीक पहले सबसे बुरी खबर आई। टीम के प्रमुख विकेटकीपर बल्लेबाज कुसल परेरा की कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव निकली, जिससे वनडे मुकाबलों में उनकी उपलब्धता खत्म हो गई। 15 अगस्त 2021 को खिलाड़ियों की आरटी-पीसीआर जांच में उनका सैंपल पॉजिटिव पाया गया। इसके बाद श्रीलंकाई स्वास्थ्य नियमों के तहत उन्हें 10 दिन आइसोलेशन और उसके बाद 4 दिन होम क्वारंटीन में रहना पड़ा।

क्रिकेट बोर्ड ने बयान जारी कर बताया कि खिलाड़ी सभी मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं और टीम प्रबंधन लगातार स्वास्थ्य अपडेट ले रहा है। परेशानी यह भी थी कि परेरा पहले से कंधे की चोट से जूझ रहे थे, जो इंग्लैंड दौरे के दौरान लगी थी। इसी वजह से वे भारत के खिलाफ सीमित ओवरों की सीरीज और डायलॉग-एसएलसी इनविटेशनल टी20 लीग से भी बाहर रहे थे। अब कोविड-19 की बाधा ने उनके मैदान पर लौटने के रास्ते को और लंबा कर दिया।

आइसोलेशन के कैलेंडर के हिसाब से वे वनडे चरण में तो नहीं दिखते, लेकिन टीम मैनेजमेंट की उम्मीद थी कि टी20 चरण तक वे निगेटिव रिपोर्ट के साथ फिटनेस टेस्ट पास करके वापसी कर लें। टी20 के लिए समय थोड़ा था, पर नामुमकिन नहीं। कोविड के बाद खिलाड़ियों की वापसी में अब कार्डियक और लंग स्क्रीनिंग भी शामिल होती है, साथ ही ग्रेडेड ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है। परेरा को कंधे की रिहैब के साथ इस अतिरिक्त फिटनेस रोडमैप से भी गुजरना पड़ना था।

यह झटका सिर्फ एक स्थान खाली होने भर की बात नहीं है। परेरा श्रीलंकाई टॉप ऑर्डर की गति तय करते हैं, नई गेंद के खिलाफ स्ट्रोकप्ले से पावरप्ले में रन की रफ्तार बढ़ाते हैं और विकेट के पीछे उनकी मौजूदगी स्पिनरों के साथ तालमेल का भरोसा देती है। ऐसे खिलाड़ी के बाहर होने से टीम की रणनीति बदलनी पड़ती है।

प्लान बी: विकेटकीपर की दौड़, पिच की भाषा और वनडे सुपर लीग का दबाव

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अब सवाल यह था कि विकेटकीपर कौन होगा। मौके के सबसे करीब दो नाम थे—मिनोद भानुका और दिनेश चांदीमल। दोनों के खेल का रंग अलग है, और यही चयन की असली पहेली बनी।

मिनोद भानुका तेज शुरुआत करने वाले विकेटकीपर बल्लेबाज माने जाते हैं। छोटे करियर में उन्होंने दिखाया है कि वे नई गेंद के सामने बंधे-बंधे नहीं खेलते। अगर टीम को पावरप्ले में जोखिम उठाना है और बैटिंग ऑर्डर को दाएं-बाएं हाथ के कॉम्बिनेशन के साथ लचीला रखना है, तो उनके पक्ष में तर्क मजबूत होते हैं।

चांदीमल दूसरी तरफ अनुभव का ठोस पैकेज हैं। मुश्किल विकेटों पर एंकर की भूमिका निभाने में माहिर, गेम को गहराई तक ले जाने की आदत और स्पिन के खिलाफ सहज फुटवर्क उनकी पहचान है। अगर रणनीति यह है कि शुरुआत संभलकर हो और मिडिल ओवरों में रनरेट स्थिर रखा जाए, तो चांदीमल सुरक्षित विकल्प दिखते हैं।

टीम मैनेजमेंट को विकेट के पीछे की जरूरतें भी देखनी थीं। कोलंबो के आर. प्रेमदासा स्टेडियम पर दिन-रात के खेलों में अक्सर स्पिनरों को पकड़ मिलती है। ऐसी सतहों पर स्टंपिंग और कम-ऊंचाई पर कैचिंग अहम हो जाती है। दोनों विकल्पों को इसी कसौटी पर परखा जा रहा था।

लॉजिस्टिक्स की तरफ देखें तो 29 खिलाड़ी बायो-सिक्योर सेटअप में ट्रेनिंग कर रहे थे और सीरीज शुरू होने से पहले स्क्वॉड को 22 तक सीमित करने की योजना थी। बबल में प्रवेश लगभग 25 अगस्त के आसपास तय था, ताकि सभी खिलाड़ियों के टेस्ट, आइसोलेशन और इंट्रा-स्क्वॉड ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त समय मिल सके। रोजाना जांच, सीमित मूवमेंट और नियंत्रित ट्रेनिंग स्लॉट—यही बबल की दिनचर्या थी।

वनडे शेड्यूल साफ था—2, 4 और 7 सितंबर को तीन मैच, सभी कोलंबो के आर. प्रेमदासा पर। यही मैदान 10, 12 और 14 सितंबर के टी20 मुकाबलों की मेजबानी भी करने वाला था। यह स्टेडियम रात्रि मैचों में डे-नाइट ओस के लिए जाना जाता है, जो दूसरी पारी में गेंदबाजों को चुनौती देता है। टीमों को इसी हिसाब से उतना ही सूखा और हार्ड रोलिंग पिच चाहिए थी कि स्पिन थोड़ी देर तक कायम रहे और डेथ ओवरों में ओस असर न बढ़ा दे।

सितंबर की शुरुआत में कोलंबो का मौसम उमस से भरा रहता है और शाम को हल्की बारिश की गुंजाइश बनी रहती है। इस वजह से डकवर्थ-लुईस-स्टर्न फॉर्मूला चर्चा में रहता है और कप्तानों को टॉस से पहले ही अपना ओवर-बाय-ओवर ब्लूप्रिंट तय करना पड़ता है।

रणनीति के स्तर पर परेरा के बाहर होने से श्रीलंका को टॉप ऑर्डर की सूरत बदलनी पड़ती है। विकल्प यह कि कोई स्थिर ओपनर शुरुआत करे और दूसरे छोर पर एक आक्रामक बल्लेबाज को आजादी मिले। तीसरा विकल्प—मिडिल ऑर्डर में एक अतिरिक्त स्पिन-ऑलराउंडर लाकर गेंदबाजी को गहराई दें, क्योंकि विकेटकीपर की बैटिंग से मिलने वाले अतिरिक्त रन अब उतने सुनिश्चित नहीं हैं।

श्रीलंका के लिए यह सीरीज सिर्फ फॉर्म का नहीं, पॉइंट्स का सवाल भी थी। आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप सुपर लीग के अंक तालिका में हर मैच का असर 2023 विश्व कप क्वालिफिकेशन पर पड़ना था। घर में खेले जाने वाले मुकाबलों में अंक गंवाना महंगा पड़ सकता था, इसलिए चयन और कॉम्बिनेशन पर जोखिम सीमित रखना समझदारी थी।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ श्रीलंका का घरेलू रिकॉर्ड मिश्रित रहा है। मेहमान टीम पेस से दबाव बनाती है, जबकि कोलंबो की पिचें पारंपरिक रूप से स्पिन-पक्षधर मानी जाती हैं। ऐसे में विकेटकीपर का चयन सिर्फ बैटिंग से नहीं, बल्कि स्पिनरों के साथ तालमेल और डीआरएस कॉल्स की कुशलता से भी तय होना था। गलत स्टंपिंग चूक या लेट रिव्यू, मैच को मिनटों में पलट सकता है।

अब बात परेरा की वापसी की। कोविड निगेटिव आने के बाद भी एथलीट्स को धीरे-धीरे वर्कलोड बढ़ाना होता है—पहले हल्की रनिंग, फिर नेट्स, उसके बाद मैच-सिमुलेशन। कंधे की पुरानी समस्या इस प्रक्रिया को और संवेदनशील बनाती है। अगर टीम ने उन्हें टी20 के लिए फिट माना, तब भी सीधे मैच में लौटाना तभी सही है जब थ्रोइंग, डाइविंग और बैट स्विंग पर कोई दर्द या सीमित मूवमेंट न हो।

टीम कैंप के अंदर मूड व्यावहारिक था—जो उपलब्ध है, उसी से सर्वश्रेष्ठ संयोजन निकाला जाए। कोचिंग स्टाफ ने इस दौरान बेंच स्ट्रेंथ पर भरोसा दिखाया, खासकर फील्डिंग ड्रिल्स और डेथ ओवर्स बैटिंग पर। ओपन नेट्स में टॉप ऑर्डर ने पावरप्ले की परिदृश्यों का अभ्यास किया—स्विंग मिलती है तो एक अतिरिक्त ओपनर बैट, अगर ग्रिप करती है तो स्वीप और रिवर्स स्वीप से स्पिन को तोड़ना।

सीरीज की शुरुआत से पहले आखिरी सवाल यही था—क्या श्रीलंका परेरा के बिना वनडे में टोन सेट कर पाएगा और क्या उनकी संभावित टी20 वापसी तक टीम पॉइंट्स और मोमेंटम बचा पाएगी। क्रिकेट में कभी-कभी एक खिलाड़ी की अनुपस्थिति पूरी ड्रेसिंग रूम की ऊर्जा बदल देती है। लेकिन घरेलू परिस्थितियों, स्पिन बैटरी और दर्शकों के उत्साह के साथ श्रीलंका के पास फिर भी वह मौका था कि वे स्मार्ट चयन और सटीक निष्पादन से कहानी अपने रास्ते पर ला दें।

बोर्ड ने साफ संकेत दिए कि स्वास्थ्य प्राथमिकता है और जल्दबाजी नहीं होगी। अगर परेरा टी20 चरण तक पूरी तरह फिट नहीं हुए, तो उन्हें आराम दिया जाएगा और पुनर्वास पूरा कराया जाएगा। इस दौरान जो भी खिलाड़ी मौका पाएंगे, उनके लिए यह मंच है—खुद को साबित करने का और लंबे समय के लिए टीम सोच में जगह बनाने का।

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